गुरुवार, 12 जुलाई 2018

Dainik Bhaskar Pesticides 20 June2017

कृषियोग्य भूमि के आधार पर पंजाब के बाद हरियाणा देश में सर्वाधिक कीटनाशक इस्तेमाल करने वाला राज्य बन चुका है। उत्पादन की होड़ और जागरूकता की कमी से 36 लाख हेक्टेयर भूमि पर हर वर्ष कीटनाशक का इस्तेमाल 42 हजार क्विंटल तक पहुंचा गया है। पेस्टिसाइड के अंधाधुंध इस्तेमाल से हम भले ही अनाज का उत्पादन बढ़ाकर केंद्रीय पूल के योगदान में दूसरे नंबर पर पहुंच गए हैं लेकिन बीमारियों की फसल भी साथ में बो रहे हैं। तंबाकू के बाद प्रदेश में कैंसर का सबसे बड़ा कारण पेस्टिसाइड बन गया है। इंडियन काउंसिलिंग ऑफ मेडिकल रिसर्च ने भी इस पर मुहर लगाई है। 

हरियाणा में हर साल औसतन 29261 नए कैंसर के पेसेंट सामने रहे हैं और पिछले तीन साल में ही 14797 लोगों की मौत हो चुकी है। इसके साथ ही हार्ट, बीपी, दमा और स्किन एलर्जी के मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। कीटनाशक की भारी खपत का मोटा लाभ सैकड़ों कंपनियां उठा रही हैं। इनमें कई कंपनियां घटिया किस्म का पेस्टिसाइड बेच रही हैं। सरकार की ओर से ही लिए गए नमूनों में करीब 1478 फेल हो गए हैं। ये पेस्टिसाइड सबस्टैंडर्ड और घटिया क्वालिटी के मिले। प्रदेश में ऐसी कंपनियों की भरमार है जिनके पास लैब, रिसर्च के संसाधन तक नहीं हैं। यह सिर्फ दूसरी कंपनियों के फॉर्मूले पर कीटनाशक बना रही हैं। हरियाणा में पेस्टसाइड का कारोबार करीब 1100 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। 

एक्सपर्ट : अशोक यादव, रिटायर्ड आईएएस हरियाणा कृषि िवभाग में डीजी रहते हुए कीटनाशकों के प्रभाव पर कई स्टडी कराई।) 

(विशेषज्ञों के अनुसार यूपी, बिहार और महाराष्ट्र में गुटखा, तंबाकू से ज्यादा कैंसर हो रहा है। हरियाणा में डाइट हेल्दी है, इसलिए यहां कैंसर रोगियों का बढ़ना चिंताजनक है ) 

फेफड़े, किडनी, लिवर गले जैसे हिस्से पर ज्यादा असर करता है पेस्टिसाइड। 

खाद्य पदार्थों में मिला कीटनाशक भोजन के जरिए जबकि हवा में घुला पेस्टिसाइड सांस के माध्यम से। 

फसलों, सब्जियों फलों में प्रयोग किया जा रहा अंधाधुंध कीटनाशक रिसाइकिल होकर हमारे शरीर में प्रवेश करता है। 

प्रदेश कैंसर रोगी आबादी 

हरियाणा 877842.53 करोड़

आंध्रप्रदेश 1533748.46 करोड़

उत्तरप्रदेश 64256219.95 करोड़

बिहार34086010.38 करोड़

महाराष्ट्र35032211.23 करोड़

प्रदेश कीटनाशक कृषि योग्य भूमि 

हरियाणा 4200एमटीटन 36.45लाखहेक्टेयर 

आंध्रप्रदेश 5220एमटी टन 88.79 लाख हेक्टेयर 

उत्तरप्रदेश 9096एमटी टन 1.89 करोड़ हेक्टेयर 

महाराष्ट्र10894एमटी टन 2.11 करोड़ हेक्टेयर 

तेलंगाना4390एमटी टन 69.29 लाख हेक्टेयर 

( इन प्रदेशों में कृषि योग्य जमीन करीब ढाई गुना ज्यादा है, जबकि पेस्टीसाइड का प्रयोग सिर्फ 25 % अधिक) 

प्रदेश में तीन सालों में कैंसर के कुल 87784 नए केस सामने आए... 

15000 कीमौतें तीन साल में... 

बाेने से पहले से लेकर कटाई तक फसलों में औसतन 4 से 5 बार डाला जाता है कीटनाशक। हरियाणा में मानकों पर खरे उतरने वाले कीटनाशकों की भरमार, लगभग पौने दो सौ नमूने हर साल हो रहे हैं फेल। 

2016 

2015 

2014 

30611 

29240 

27933 

इनसेक्टिसाइड एक्ट-1968 के तहत कीटनाशक कंपनियां का रजिस्ट्रेशन होता है। सेक्शन-9 (3) के तहत उन कंपनियों को लाइसेंस दिया जाता है, जिन्होंने खुद की रिसर्च के बाद कम से कम तीन जगह या एग्रीकल्चर यूनविर्सिटी में छह माह तक प्रैक्टिकल प्रोसेस किया है। यूनिवर्सिटी से सर्टिफिकेट लिया हो। देश में ऐसी कंपनियां 585 हैं। सेक्शन- 9(4) के तहत वे कंपनियां होती हैं, जो दवा बनाने का शपथ पत्र देती हैं, लेकिन लैब होती है, रिसर्च की व्यवस्था। ऐसी कंपनियों का डाटा कभी उजागर नहीं किया गया। अक्टूबर, 2008 में राज्यसभा में पेश पेस्टीसाइड मैनेजमेंट बिल लटका हुआ है। इसमें लाइसेंस, डिस्ट्रीब्यूशन, जांच प्रक्रिया फॉर्मूले की समीक्षा लाइसेंस रद्द करने के प्रावधान हैं। जबकि अभी इनसेक्टिसाइड एक्ट में सबस्टैंडर्ड कीटनाशक बेचने वालों पर 2 से 5 हजार रु. तक जुर्माना या 2 साल कैद का प्रावधान है। 

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च (एनआईसीपीआर) के अनुसार प्रदेश में खाद्य पदार्थों के माध्यम से शरीर में रोजाना 0.5 मिली ग्राम कीटनाशक जा रहा है। राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर, दिल्ली की यूनिट चीफ डॉ. स्वरूपा मित्रा के अनुसार तंबाकू के बाद हरियाणा में कीटनाशक कैंसर का दूसरा बड़ा कारण बन रहा है। लगभग 30% केस इसी वजह से हो रहे हैं। डायबिटीज हृदय रोगियों की संख्या बढ़ने के कारण भी यही केमिकल हैं। इसी तरह रोहतक पीजीआई कैंसर यूनिट एचओडी डॉ. अशोक चौहान बताते हैं कि कीटनाशक शरीर के जिस हिस्से से गुजरता है, उसको नुकसान पहुंचाता है। खासकर फेफड़े, किडनी, लिवर और गला आदि। धीरे-धीरे मात्रा ज्यादा बढ़ने पर यह ब्लड में भी घुल जाता है और ब्लड कैंसर का खतरा बन जाता है। कीटनाशक नर्व सिस्टम पर भी बुरा असर डालता है। 

विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों काे जागरूक करना होगा कि कब, कैसे, कहां और कितना पेस्टिसाइड डाला जाना चाहिए। जैसे गन्ने की बिजाई से पहले ही खेत में पेस्टिसाइड छिड़काव कर दिया जाता है, इसकी जरूरत ही नहीं है। किसान जब दवा का छिड़काव करता है तो केवल 30% दवा ही पौधे पर गिरती है। बाकी हवा में उड़ती है या फिर मिट्‌टी में। कंपनियां जागरूकता की कमी का फायदा उठा रही हैं। वह घटिया किस्म के नकली पेस्टिसाइड्स बेच रही हैं। ये कम असरकारक होते हैं, इसलिए बार-बार और ज्यादा-ज्यादा डालना पड़ता है। कुछ समय पहले ही गुड़गांव में ब्रांडेड कंपनी का नकली कीटनाशक तैयार करते हुए पकड़ा गया था। ऐसा ही मामला यूपी के कैराना में सामने आया, जहां फसल खराब हो जाने पर किसानों ने हरियाणा में नकली कीटनाशक बेचे जाने की बात कही थी। 

पोषक आहार के चक्कर में जहरीले सब्जियों व फलों का हो रहा इस्तेमाल,
जागरण संवाददाता,
लातेहार : जिले में जीवकोपार्जन का मुख्य साधन कृषि है, लेकिन इन दिनों जानकारी के अभाव में किसानों की ओर से फसलों को कीटों से बचाने के लिए अधिक कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे मानव सेहत के लिए खतरा हो गया है। यह घबराने की नहीं बल्कि सेहत के प्रति सचेत होने की बात है। पोषक आहार के चक्कर में हम रोज खाने में ऐसी सब्जियां व फलों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिनमें जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार इसकी वजह से पशु-पक्षियों की कई प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। फलों, सब्जियों व अनाज को रोगों व कीटों से बचाने और भंडारित करते समय रसायनों का प्रयोग होता है। किसानों में यह प्रवृत्ति बहुत अधिक है। रसायनों का मानव शरीर पर घातक प्रभाव पड़ता है। पशुओं के चारे में भी ऐसा ही होता है। कृषि रसायनों में मैंकोजेब, थीरम, डाइमेथोएट, क्सूनोलफास, क्यूनोलफास व जीरम का प्रभाव 15 दिन व ऑक्सीडीमेटोल मिथाइल व फोरेट का असर 35 दिन तक रहता है। इसी तरह मिथाइल पैराथियोन व मोनोप्रोटोफॉश का 21 दिनए इंडोसल्फन का 10 दिनए क्लोरोपाइरीफास, डाइक्लोरोवास व मेथालियोन का असर 5 दिन तक रहता है। इस अवधि में इनका सेवन घातक साबित हो सकता है। गौरतलब है कि जिले के किसानों की ओर से जानकारी के अभाव में भारी पैमाने पर फसलों में कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है, जानकारी होने के बावजूद कृषि विभाग मामले की सुध लेने की बात तो दूर किसानों को जागरूक करने की दिशा में भी कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है।
कोट:
रसायन से प्रभावित फल व सब्जियों से लीवर व किडनी खराब हो सकती है। आंत में इन्फेक्शन व अल्सर हो सकता है और भी कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

डॉ.श्रवण कुमार, फिजिशियन।

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